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लाइक-कमेंट के चक्कर में मौत की रील

युवा अभी रियल और रील लाइफ जी रहा है। एक असल दुनिया है और एक आभासी दुनिया। युवा इस आभासी दुनिया यानी रील पर ज़्यादा लाइक्स के चक्कर में ख़ुद को जोखिम में डाल रहे हैं। भारत में टिकटॉक पर बैन लगने के बाद रील्स और मीस बनाने का चलन सामने आया। इसके बाद लोग इंस्टाग्राम पर वीडियो डालने लगे। रील्स में इंफॉर्मेशनल, फनी, मोटिवेशनल और डांस समेत कई तरह के वीडियो होते हैं। रील्स एक तरह का इंस्टाग्राम पर शॉर्ट वीडियो होता है। शुरुआत में यह रील्स 30 सेकंड का होता था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 90 सेकंड का कर दिया है। रील बनाने का युवाओं के बीच ऐसा क्रेज आजकल है कि वह कहीं भी रील बनाने लग जाते हैं। कई बार इस रीलबाजी के चक्कर में लोग अपना ही नुक़सान भी करा बैठते हैं। सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बढ़ाने के शगल के कारण युवा ज़िन्दगी में रील बनाने का क्रेज बढ़ता जा रहा है। कब यह शौक सनक की हद तक पहुँच जाता है, पता ही नहीं चलता। नियमों को ताक पर रखकर रील बनाने के जुनून में जान तक गंवा देते हैं। शहर में ही युवाओं को फ़ेसबुक से लेकर इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए जान जोखिम में डालकर रेलवे ट्रैक, फ्लाई ओवर पर, चलती रेल में कोच के डिब्बे के बीच खड़े होकर या बाइक चलाते हुए रील बनाते देखा जा सकता है।

 

युवा अभी रियल और रील लाइफ जी रहा है। एक असल दुनिया है और एक आभासी दुनिया। युवा इस आभासी दुनिया यानी रील पर ज़्यादा लाइक्स के चक्कर में ख़ुद को जोखिम में डाल रहे हैं। कई युवा रील को रोचक बनाने के चक्कर में पानी के बीच उतर रहे हैं तो कई युवा टूटी दीवारों पर चढ़कर रील बना रहे हैं। वैसे तो रील्स बनाने का खुमार हर वर्ग के लोगों को है, लेकिन इसमें खासकर 16 से 40 वर्ष के युवा वर्ग में ये क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर लोकप्रिय होने या अपने फॉलोअर्स बढ़ाने के जुनून में लोग इतने खो जाते हैं कि कुछ अलग हटकर दिखाने के चक्कर में ख़ुद के साथ-साथ कई बार दूसरों तक की जान से खिलवाड़ कर डालते हैं।

 

लोकप्रियता हासिल करने के लिए कभी कोई रेलवे ट्रैक पर ट्रेन के सामने पहुँच जाता है तो कभी कोई बहुमंजिला इमारत पर खड़े होकर वीडियो बनाता है। कभी वाहन चलाते समय स्टंटबाजी, कभी सड़कों व चौक-चौराहों पर डांस, स्टंट करना, सिलीसेढ़ और बाँध पर खड़े होकर रील्स बनाना। कभी किसी पहाड़ पर खड़े होकर अजीब हरकतें करना। कहीं झरनों व जलाशयों के बीचोंबीच जाकर पानी में बेपरवाह मस्ती करते हुए रील्स बनाना। कभी रेलवे ट्रैक पर जाकर या प्लेटफार्म या चलती ट्रेन में दरवाजे पर खड़े होकर रील्स बनाना।

 

रील लाइफ की तुलना से युवाओं का आत्मसम्मान प्रभावित हो रहा है। सोशल मीडिया की दुनिया में परफेक्ट दिखने की होड़ में जब उनकी पोस्ट को वांछित प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो वे निराश हो जाते हैं। इसका सीधा असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है, जिससे वे और ज़्यादा सोशल मीडिया पर सक्रिय हो जाते हैं और इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस समस्या से निपटने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों को मिलकर युवाओं को वास्तविक जीवन के महत्त्व का अहसास कराना चाहिए। टेलेंट है तो बहुत से विषय हैं रील बनाने केयदि किसी में टेलेंट है तो जान को जोखिम में डालने वाली रील बनाने की बजाय मोटिवेशनल, संगीत, नृत्य, तकनीकी ज्ञान, सेहत से जुड़ी टिप्स, धर्म, विज्ञान, फिटनेस, हास्य-व्यंग्य, खान-पान सहित सैकड़ों विषयों पर रील बनाकर ख्याति अर्जित कर सकता है। रील्स की बजाय अपने दोस्तों के साथ समय गुजारें मॉर्निंग वॉक के साथ व्यायाम करने में समय बिताएंरील्स देखने के कारण बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं, उन्हें मोबाइल से दूर रखेंबच्चों के सामने कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करेंबच्चों को वक़्त दें, उनसे पारिवारिक बातें करें।

 

फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए टेलेंट होना बहुत ज़रूरी है। यदि आपके अंदर टेलेंट है तो फाॅलोअर्स अपने आप ही बढ़ जाएंगे। यदि युवा ट्रैक पर खड़े होकर रील बना रहे है तो बहुत ग़लत है। इससे दूसरे बच्चों पर भी ग़लत असर पड़ेगा। रील बनाने वालों के साथ उनकी वीडियो देखने वालों की भी मूर्खता है। इनका विरोध करना चाहिए। युवा जल्दी फेमस होने के लिए रील बना रहे हैं, जोकि बहुत ग़लत है। मैं कई जगह रेलवे ट्रैक और फ्लाई ओवर पर रील बनाते हुए युवाओं को देखता हूँ। उन्हें रील बनानी है तो सबसे पहले सुरक्षित जगह चुनें। बच्चे रेलवे ट्रैक या फिर रिस्क वाली जगह पर रील बना रहे हैं तो माता-पिता को इन पर निगरानी रखनी चाहिए।

 

सोशल मीडिया के चलते बच्चों और युवाओं में सामाजिक दिखावे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। युवा फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए एक-दूसरे की देखादेखी कर रहे हैं। उन्हें नहीं पता होता कि इसका नतीजा क्या होगा। उन्हें वास्तविकता का पता नहीं है। बच्चे अपने माता-पिता की बात नहीं मानते हैं। जो उम्र पढ़ने की होती है उसमें रील बना रहे हैं। रिस्क भी ज़्यादा लेते हैं। ऐसे बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों की भी काउंसिलिंग की ज़रूरत है। युवाओं के साथ-साथ अब छोटे बच्चों में भी मोबाइल पर रील्स बनाने की आदत होने लगी है। बच्चे घर पर अकेले रहते हैं सोशल मीडिया का अट्रैक्शन है। सबको अच्छा लगता है कि उन्हें लोग पसंद करे, तारीफ करें। इससे बचने का यही उपाय है कि बच्चों को मोबाइल का प्रयोग कम करने दे। मोबाइल देखते समय बड़े उनके साथ ही रहें, जिससे वह कुछ ग़लत ना कर सके।

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– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,

हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148,01255281381

 

— Dr. Satyawan Saurabh,

Poet, freelance journalist and columnist,

All India Radio and TV panelist,

333, Pari Vatika, Kaushalya Bhavan, Barwa (Siwani) Bhiwani,

Haryana – 127045, Mobile :9466526148,01255281381

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